दोस्तों अभी तक हमने AC और DC के बारे में पढ़ा। हमने पढ़ा कि इलेक्ट्रॉन के प्रवाह को ही विधुत कहते हैं। परंतु विधुत ऊर्जा का एक और पहलू है, जिसे हम चुंबकीय क्षेत्र कहते हैं। आइये इसके बारे में जानते हैं।
सन 1819 में वैज्ञानिक हंस क्रिश्चयन आर्सट्रेट ने एक प्रयोग किया।
आर्सट्रेट ने एक चुंबकीय सुई को एक तार के समीप रखा और तार के दोनों सिरे को एक स्विच के माध्यम से battery से जोड़ दिया। आर्सट्रेट ने जैसे ही स्विच ऑन किया, चुंबकीय सुई एक दिशा मे घूम गई। यहाँ पर आर्सट्रेट को पता चला कि जब किसी चालक में धारा प्रवाह करती है, तब चालक के चारों तरफ एक चुंबकीय क्षेत्र बन जाता है। अब आर्सट्रेट ने battery से तार के कनैक्शन उल्टे कर दिये। धारा की दिशा बदलते ही चुंबकीय सुई भी विपरीत दिशा में घूम गई। इससे पता चला की चालक में बने चुंबकीय क्षेत्र की भी एक दिशा हैती है। धारा की दिशा बदलने पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा भी बादल जाती है।
आर्सट्रेट ने यह भी पता लगाया कि चुंबकीय क्षेत्र, धारावाही चालक के नजदीक अधिक होता है और दूर जाने पर चुंबकीय क्षेत्र घटता है। यदि चालक में current बढ़ाया जाये तो चालक के आस-पास चुंबकीय क्षेत्र भी और प्रबल होता जाता है। यह चुंबकीय क्षेत्र, धारा कि दिशा के लम्बवत(perpendicular) होता है।
ऊपर चित्र में धरावाही चालक पर घूमता हुआ चुंबकीय क्षेत्र दिखाया गया है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा का पता, दाँया हाथ की बंद मुट्ठी के नियम से आसानी से लगाया जा सकता है।
चित्र के अनुसार, यदि धारावाही चालक को दाँये हाथ से, धारा की दिशा मे अंगूठा करके पकड़ें तो, चुंबकीय क्षेत्र की दिशा, बंद मुट्ठी की अंगुलियों की दिशा मे होगी। चुंबकीय क्षेत्र को देखा नहीं जा सकता, अतः इन्हें काल्पनिक रेखाओं से दर्शाया जाता है। इन काल्पनिक रेखाओं को चुंबकीय बल रेखा कहते हैं। यह रेखाएँ, पूर्ण घेरा बनाती हैं।
आइए चुंबकीय क्षेत्र से जुड़ी कुछ परिभाषा और यूनिट के बारे में जानते हैं।
परन्तु सारी चुंबकीय बल रेखाएँ एकत्रित नहीं हुई हैं। यदि कुंडली के मध्य एक लोहे की छड़ रख दी जाये तो सारी चुंबकीय बल रेखाएँ एकत्रित हो कर लोहे की छड़ में से गुजरती हैं।
यदि दायाँ हाथ की अंगुलियों को धारा के बहाने की दिशा में बंद करके कुंडली को पकड़ा जाये तो अंगूठे की दिशा मे North pole(उत्तरी ध्रुव) होगा। अतः इसके विपरीत दक्षणी ध्रुव होगा।
इस प्रकार के चुंबक मे धारा का मान जितना बढ़ाया जाये, चुंबकीय शक्ति भी saturation बिन्दु पर पहुँचने तक उतनी ही प्रबल होती जाती है। इस प्रकार के चुंबकों का प्रयोग, औध्योगिक क्षेत्रों में कई तरह से होता है। जैसे लोहे के भरी समान को उठाने के लिए, बुलेट ट्रेन की पटरियों में, पुरानी कान फोड़ देने वाली door bell में, आदि।
सन 1819 में वैज्ञानिक हंस क्रिश्चयन आर्सट्रेट ने एक प्रयोग किया।
आर्सट्रेट ने यह भी पता लगाया कि चुंबकीय क्षेत्र, धारावाही चालक के नजदीक अधिक होता है और दूर जाने पर चुंबकीय क्षेत्र घटता है। यदि चालक में current बढ़ाया जाये तो चालक के आस-पास चुंबकीय क्षेत्र भी और प्रबल होता जाता है। यह चुंबकीय क्षेत्र, धारा कि दिशा के लम्बवत(perpendicular) होता है।
आइए चुंबकीय क्षेत्र से जुड़ी कुछ परिभाषा और यूनिट के बारे में जानते हैं।
- Magnetic line of induction:-
चुंबक के पास बने चुंबकीय क्षेत्र की काल्पनिक रेखाएँ, चुंबकीय प्रेरण रेखा(magnetic line of induction) कहलती हैं। ये रेखाएँ चुंबक के अंदर south से north की ओर चलती हैं, और चुंबक के बाहर north से south की ओर चलती हैं। इन रेखाओं की दिशा का ज्ञान होना जरूरी है क्योंकि बिजली की मोटर के घूमने की दिशा में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। सभी चुंबकीय रेखा पूर्ण बंद छल्ले में होती हैं और कभी भी एक-दूसरे को नहीं काटती हैं। चुंबक के पास रेखाओं का घनत्व ज्यादा होता है और दूर जाने पर घटना सुरू हो जाता है।
- flux:- 108 चुंबकीय बल रेखाओं के समूह को एक चुंबकीय flux कहते हैं। Flux की unit वेबर(weber) और इसे 'Ø' (फ़ाइ) से प्रदर्शित करते हैं।
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Flux घनत्व :- चुंबकीय क्षेत्र में किसी भी जगहा, चुंबकीय बल रेखाओं की दिशा में, एक unit area से गुजरने वाली कुल रेखाओं को उस जगह पर flux घनत्व कहते हैं।चित्र में बिन्दु 'b' पर unit area में flux घनत्व सबसे अधिक है, जबकि उतने ही unit area 'c' में flux घनत्व कम है और बिन्दु 'a' पर सबसे कम है। Flux घनत्व को 'B' से प्रदर्शित करते हैं और इसकी unit Tesla है। B = Ø/area या weber/Meter2 या We/m2 या tesla - Coulomb का चुंबकीय बल :-माना कि M1 और M2 की प्रबलता वाले दो चुंबकीय क्षेत्र, 'd' दूरी पर हैं। अतः दोनों के बीच आकर्षण या प्रत्याकर्षण बल लगेगा। दोनों क्षेत्र के बीच की दूरी जितनी ज्यादा होगी, बल उतना ही कम होगा। अतः बल(Force) F α 1/d2 (F, दूरी d के वर्ग के वितक्रमानुपाती है)। परन्तु M1 और M2 की सामर्थ बढ़ने पर F का मान बढ़ेगा। अतः F α (M1M2)/d2 या F = K(M1M2)/d2 यहाँ K = Constant, = 1/4Πµ0µr है। (µ0µr = miu
- µ0= वायु या निर्वात(vacuum) की चुंबकसीलता है और इसका मान 4Π × 10-7 हेनरी/ meter है।
- µr = वायु के सापेक्ष माध्यम की चुंबकसीलता है। यदि दोनों चुंबकीय क्षेत्र के बीच का माध्यम, वायु है, तब µr का मान 1 होगा।
हमने ऊपर पढ़ा कि, चालक में धारा के बहने से उसके आस-पास चुंबकीय क्षेत्र बन जाता है। अब हम पढ़ेंगे कि कैसे धरावाही चालक से चुंबक बनाया जा सकता है।
माना कि एक धरावही चालक है। हम जानते हैं कि उसके चारों-तरफ एक चुंबकीय क्षेत्र घूम रहा है। अब हम ऐसे ही और चालक लेते हैं और सभी को बराबर में रख कर एक साथ विधुत सप्लाइ से जोड़ देते हैं।
चित्र 2 में सभी चालकों का अपना-अपना चुंबकीय क्षेत्र बनता है जो कि एक ही दिशा में घूमता है पर एक दूसरे से पृथक है। यदि हम एक लोहे का टुकड़ा इन चालकों के पास रखते हैं तो सभी चालकों का चुंबकीय क्षेत्र एकत्रित होकर उसी दिशा में लोहे के अंदर से होकर गुजरता है। यदि हम एक ही धरावही चालक को कुंडली(coil) की तरह लपेट लें तो इसकी चुंबकीय बल रेखाएँ भी समिलित हो जाता है।
परन्तु सारी चुंबकीय बल रेखाएँ एकत्रित नहीं हुई हैं। यदि कुंडली के मध्य एक लोहे की छड़ रख दी जाये तो सारी चुंबकीय बल रेखाएँ एकत्रित हो कर लोहे की छड़ में से गुजरती हैं।
इस तरह लोहे की छड़ एक चुंबक की तरह कार्य करती है। यह ऐसा इस लिए होता है क्योंकि जेसे बिजली, प्लास्टिक में से बहने की जगह किसी धातु में से ज्यदा अच्छे से गुजरती है, उसी तरह चुंबकीय बल रेखाएँ भी हवा में से बहने की जगह लोहे में से ज्यदा अच्छे से गुजरती है। इस तरह के विधुतीय चुंबक के ध्रुवों का पता लगाने के लिया दोबारा दायाँ हाथ की बंद मुट्ठी के नियम का स्तेमाल करते हैं, परन्तु ऊपर पढ़े गए नियम के विपरीत।
यदि दायाँ हाथ की अंगुलियों को धारा के बहाने की दिशा में बंद करके कुंडली को पकड़ा जाये तो अंगूठे की दिशा मे North pole(उत्तरी ध्रुव) होगा। अतः इसके विपरीत दक्षणी ध्रुव होगा।
इस प्रकार के चुंबक मे धारा का मान जितना बढ़ाया जाये, चुंबकीय शक्ति भी saturation बिन्दु पर पहुँचने तक उतनी ही प्रबल होती जाती है। इस प्रकार के चुंबकों का प्रयोग, औध्योगिक क्षेत्रों में कई तरह से होता है। जैसे लोहे के भरी समान को उठाने के लिए, बुलेट ट्रेन की पटरियों में, पुरानी कान फोड़ देने वाली door bell में, आदि।






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