Semiconductor physics

Intrinsic and Extrinsic materials

Intrinsic semiconductors:- ऐसे semiconductors जो कि अपनी pure(शुद्ध) अवस्था में होते हैं, intrinsic semiconductors कहलाते हैं। शुद्ध silicon और शुद्ध germanium, intrinsic के उदाहरण हैं। अपनी शुद्ध अवस्था में, इन semiconductors में बहुत कम free electrons होते हैं, अतः ये किसी कुचालक(insulator) की तरह व्यवहार करते हैं।
चित्र में शुद्ध सिलिकॉन दिखाया गया है। प्रत्येक सिलिकॉन का परमाणु, अपने नजदीकी चार अन्य सिलिकॉन के परमाणु से covalent bond बना कर जुड़ा होता है। परंतु साधारण तापमान में भी कुछ इलेक्ट्रॉन, bond तोड़ कर, randomly यहाँ-वहाँ घूमते हैं। Electron में negative चार्ज होता है, जबकि hole को positive चार्ज माना जाता है, क्योंकि यह नजदीकी electron को अपनी ओर आकर्षित करता है।
Electron-Hole pair:- किसी पदार्थ में जब कोई electron, covalent bond तोड़ के, अलग होता है, तब उसकी जगह पर एक खाली स्थान बचता है, इस खाली स्थान को  hole या weber कहते हैं। एक electron और उसके कारण बने एक hole को एक electron-hole pair कहते हैं। तापमान बढ़ने पर electron-hole pair की संख्या भी बढ़ती है जबकि कुछ इलेक्ट्रॉन वापस hole में जाकर neutral हो जाते हैं। Electrons के वापस hole में जाने की process को electron-hole recombination कहते हैं।
Extrinsic semiconductors:- जब किसी शुद्ध पदार्थ या intrinsic semiconductor में कोई अन्य पदार्थ या अशुद्धियाँ मिला दी जाये तो तब यह Extrinsic बन जाता है। Semiconductors की चालकता बढ़ाने के लिए इनमे कुछ खास किस्म की अशुद्धियाँ मिलाई जाती हैं।
Doping:- किसी शुद्ध semiconductor में उसकी चालकता बढ़ाने के लिए अशुद्धियाँ मिलाने की प्रक्रिया को Doping कहते हैं। Doping द्वारा दो प्रकार के Extrinsic semiconductor बनाये जाते हैं।
P-Type semiconductor:- हमने ऊपर पढ़ा कि शुद्ध semiconductor या उदाहरण के लिए सिलिकॉन में प्रत्येक atom(परमाणु) अपने नजदीकी चार अन्य atom से जुड़ कर अपनी बाहरी कक्षा के 8 इलेक्ट्रॉन पूरे करता है। यदि शुद्ध सिलिकॉन में डोपिंग के द्वारा कोई ऐसा तत्व मिला दिया जाये, जिसके valency band में केवल तीन इलेक्ट्रॉन हों, तब एक इलेक्ट्रॉन की जगह खाली या hole रह जाता है। क्योंकि इस प्रकार के पदार्थ में positive hole की संख्या free इलेक्ट्रॉन से ज्यादा होती है, इसलिए इस प्रकार से बने नये पदार्थ को P-Type Semiconductor कहते हैं। चित्र में silicon में Indium की डोपिंग की गयी है।  Boron, Aluminium, Gallium, Indium, सभी 3 valency वाली मुख्य अशुद्धियाँ हैं, जोकि P-Type semiconductor बनाने के लिए स्तेमाल होती हैं। P-type semiconductor बनाने के लिए मिलाये जाने वाली अशुद्धि के कारण +ve hole बनता है, परंतु अशुद्धि खुद नेगेटिव ion बन जाती है। ऊपर चित्र में Indium का परमाणु -ve ion है, इसे Acceptor ion या ग्राही ion भी कहते हैं।

N-Type Semiconductor:- जब किसी Semiconductor में डोपिंग के द्वारा कोई ऐसा तत्व मिला देते हैं, जिसके valency band में 5 इलेक्ट्रॉन हों, तब सभी bond बनने के बाद भी पदार्थ में एक इलेक्ट्रॉन extra बच जाता है। इस तरह पदार्थ में free negative चार्ज electron की संख्या, hole बहुत जादा होती है, इसलिए इसे N-Type semiconductor कहते हैं। Phosphorus, Arsenic और Antimony, 5 valency वाले मुख्य अशुद्धियाँ हैं, जिंका प्रयोग N-type semiconductor बनाने के लिए किया जाता है।N-type semiconductor बनाने के लिए मिलाये जाने वाली अशुद्धि के कारण -ve electron उतपन होता है, परंतु अशुद्धि खुद Positive ion बन जाती है। चित्र में Phosphorus का परमाणु +ve ion है, इसे Donor ion या दाता ion भी कहते हैं।



नोट:- साधारणतः silicon के valency band के इलेक्ट्रॉन को conduction band में आने के लिए या मुक्त होने के लिए 1.12eV के बराबर ऊर्जा की जरूरत पड़ती है जबकि Germanium में 0.72eV की जरूरत पड़ती है, परंतु doping करने के बाद N-type में silicon के लिए केवल 0.05eV और Germanium के लिए 0.01eV की आवश्यकता होती है। इस तरह डोपिंग के माध्यम से, साधारण semiconductor की भी चालकता बढ़ जाती है।
Charge carrier(आवेश वाहक):- किसी भी पदार्थ में आवेश(charge) सिर्फ electrons के कारण ही प्रवाह नहीं करता है, बल्कि electron और hole दोनों के कारण आवेश प्रवाह करता है। Holes के कारण positive +ve आवेश प्रवाह होता है, जबकि electrons के कारण negative -ve आवेश प्रवाह होता है। Holes हमेसा electrons कि विपरीत दिशा में प्रवाह करते हैं।

Majority carrier & Minority carrier(बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक आवेश वाहक):- किसी भी पदार्थ में free electrons और holes मे से जिसकी संख्या ज्यादा होती है, उसे बहुसंख्यक आवेश वाहक कहते हैं, जबकि कम वाले को अल्पसंख्यक आवेश वाहक कहते हैं।
P-type semiconductor में holes, electrons से बहुत अधिक होते हैं, अतः holes majority carrier हैं, जबकि electron minority कैरियर हैं। (डोपिंग के कारण P-type में  बहुत सारे hole बन जाते हैं, पर कुछ bond टूटने से बहुत कम संख्या में फ्री electrons भी उतपन होते हैं। ये free electrons, P-type में minority carrier कहलाते हैं।)
N-type semiconductors में electrons कि संख्या, holes से बहुत अधिक होती है, अतः electrons majority carrier हैं, जबकि hole minority carrier हैं। (डोपिंग के कारण N-type में  बहुत सारे फ्री electrons बन जाते हैं, पर कुछ bond टूटने से बहुत कम संख्या में holes भी उतपन होते हैं। ये holes, N-type में minority carrier कहलाते हैं।)
Important Note:- Donor और Acceptor ions मे भी आवेश(charge) होता है, परंतु वे स्थिर रहते हैं, अतः उन्हे स्थिर आवेश वाहक कहते हैं, जबकि holes और electrons, अपनी जगह छोड़ कर दूसरी जगह जा सकते हैं, अतः इन्हे गतिमान आवेश वाहक कहते हैं। 

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